स्कूल की याद

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बड़े बड़े हैं  शिक्षण -कक्ष
वायु रोशनी सतत समक्ष
पंखे  फर्राटे भरते प्रत्यक्ष
हवा लगे शीतल  चहुं अक्ष
भवन बना है लगे सलोना
माली फूल लगाए माना
गेट देख दिल खुश हो जाता
चार पहर घर याद न आता
शिक्षक हिंदी या विज्ञान
करें सुलभ शिक्षा का दान
खेल खेल में हुई पढ़ाई
कितनी इसकी करूं बड़ाई।
गणित कभी न रूखा लगता
जैसे समद न सूखा सहता
दो  -दो  चक्र खेल के बनते
मस्ती के दिन  चलते जाते।
मेरी खुशियों में नजर लगी
टोना कर गया करोना
बिना परीक्षा पास हुए
इतिहास को कर दिया बौना।
ऑनलाइन की चली पढ़ाई
गृह कारज की बाढ है आईं
कोई खुशी ललक  नहि बाकी
बच्चन जिसे सहज कहें साकी
दिनों रात हम लिखते पढ़ते
खेलन को जाने न देते
चीनी बीमारी बतलाकर
मित्रों को भी भगवा देते
पापा मम्मी काका काकी
निष्ठुर हो गए  किसको ताकी।
फिर से आओ मेरे स्कूल
अब न कोई करेंगे भूल
हरी हरो   ये ज्वर के शूल
प्रभु  खिलाओ कमल के फूल।

-कमल चन्द्र शुक्ल

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Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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