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मरकजी कुख्यात है वह, इस भूमि पर जो मौत लाता । प्रेम के हैं धुर विरोधी, कहीं बेर-केर का संग निभता। समर्थन इनको मिला है, बुद्धिवादी जन मनों का। है समझ में आता बराबर, यह बुद्धि है भूसा खली का । न्याय का पलड़ा हमेशा, सत्ता के संगत रहा है। जिसकी लाठी उसी की भैंस, इतिहास तो बकता रहा है। भाग कर भागो मगर यूं, छिप के भागोगे कहां । निर्मम निर्लज्ज तू जान ले, दल-बल प्रशासन है वहां। हद करी सब कर्म की, वह सब जो हमें न सोच थी हम आयुष कलश लिए बढ़े, तू मौत लिए जमात थी।
-कमल चन्द्र शुक्ल
