असंगत – जमात

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मरकजी कुख्यात है वह,
इस भूमि पर जो मौत लाता ।
प्रेम के हैं धुर विरोधी,
कहीं बेर-केर का संग निभता।
समर्थन इनको मिला है,
बुद्धिवादी जन मनों का।
है समझ में आता बराबर,
यह बुद्धि है भूसा खली का ।
न्याय का पलड़ा हमेशा,
सत्ता के संगत रहा है।
जिसकी लाठी उसी की भैंस,
इतिहास तो बकता रहा है।
भाग कर भागो मगर यूं,
छिप के भागोगे कहां ।
निर्मम निर्लज्ज तू जान ले,
दल-बल प्रशासन है वहां।
हद करी सब कर्म की,
वह सब जो हमें न सोच थी
हम आयुष कलश लिए  बढ़े,
तू मौत लिए जमात थी।

-कमल चन्द्र शुक्ल

Published by kamal shukla

जन्म स्थान- प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश . इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. एवं एम. ए. (हिंदी) , राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय से एम. ए. (शिक्षा शास्त्र), फरवरी 2000 से केन्द्रीय विद्यालय संगठन मे स्नातकोत्तर शिक्षक के पद पर कार्यरत।

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