हे नेतृत्व की सहज सत्ता विचलित न होना तुम कहीं विघटनकारी शक्तियों के सामने झुकना नहीं । भितर घाती दस्युओं की, शर्मसार बहसों में आंदोलनकारी फरेबियों की मूढ़ता में, जिन्हें खरपतवार व पेड़ समान नजर आते हैं, अवांछित बेपेंदे के लोटों से उलझकर जनहित का अवसर खोना नहीं। कुछ असमय असफलताओं से विचलित न होना, क्योंकि संभलना पुरुषार्थ की रंजना है। सामने खड़ी दीवार है कर्तव्य सत्यनिष्ठ की, भावी समत्व समाज के विकास के मंतव्य की, आज़ादी के वीर सपूतों का भावी भारत बन रहा है, नव भारत की श्रेष्ठता की खातिर अग्निबीज का बपन हो गया है। हे क्रांति वीर बादल सदृश जनता का तुम खयाल रखना रुकना नहीं बढ़ते ही जाना इतिहास है तुमको रचाना।
-कमल चंद्र शुक्ल
