बहुत देख चुकी जनता मेरी,
तेरी लुका-छिपी का खेल ।
अब अंत तुम्हारा आ ही गया है,
तेरे इति की बन गई रेल ।
अंतिम तारीख नियत हो चुकी,
अब तेरा जाना निश्चित है।
हो रक्तबीज, क्रूरता के साथी,
तेरी अंतिम घड़ी सुनिश्चित है।
रे आततायी, महा असुर,
तुम चुपके-चुपके आए थे ।
दोस्ती का आलम साथ लिए,
षडयंत्र कुचक्र का चलाए थे ।
इटली, स्पेन, फ्रांस के द्वारे,
भारत में घुसपैठ मचाए थे।
तारीख बाइस को शंखनाद घंटा, घंटी करताल बजा,
जब गोधूलि में थाल बजी तो तेरे जाने का बिगुल बजा।
हम सब भारतवासी जननायक के कदम से कदम मिलाएँगे,
सृष्टि की इस महा व्याधि से जग को मुक्त कराएँगे।
अविलंब तेरा प्रस्थान कराके,
उल्लास का सूरज लाएँगे।
-कमल चंद्र शुक्ल
