नूतन कंठ से स्वाधीनता का राग सुनाती हूँ
अंतर्मन में छिपी भावना सबको बतलाती हूँ।
स्वाधीनता है अधिकार श्रम का फल पाने का,
स्वाधीनता है अधिकार शोषकों की धज्जियां उड़ाने का,
शोषकों को गले लगाने का
ऊँच, नीच ,कुल, जाति, रंग के भेदभाव मिटाने का
रूढ़िवाद के कलुषित महल ढहाने का ।
है स्वाधीनता शिक्षा, न्याय और रोजगार पाने का
है स्वाधीनता निःसंकोच,निर्भय होकर अपनी बात बताने का
सब मान सकें अपने धर्म को,
स्वतंत्र भ्रमण कर पाने का।
स्वाधीन मनुज भूधर हिला सकता है
इस भूतल पर भी स्वर्ग ला सकता है
लड़कर भूख, भ्रष्टाचार, लाचारी से,
अपने अस्तित्व को बचा सकता है।
है चाह यही मेरी, आज़ादी का मर्म सब जाने
न करें दुरुपयोग इसका,
आज़ादी के अस्तित्व को मानें।
-कमल चन्द्र शुक्ल
