इंतज़ार वर्षों का कब मैं बड़ा होऊंगा
औ पहुंचूगा दीदी जैसी बड़ी क्लास में
तो मेरा भी बड़ा मान होगा
खान-पान का ध्यान होगा
सेवा-सत्कार विशेष होगा
मेरे माता-पिता कहीं जाने से बचेंगे
रिश्तेदारों को बोर्ड का हवाला देकर
अपने घर न बुलाने की सोचेंगे।
मच गया हाहाकार
हर तरफ अफरातफरी है
कहती है माँ आ गई बोर्ड परीक्षा है।
वो स्वर्णिम बेला
जब मैं स्टडी टेबल पर बैठा हूँ अकेला
पता चला तब क्या होता है टेस्ट
औ हम होते हैं कैसे बेस्ट।
मस्ती के दिन विदा हो गए
औ हमें वे बड़ा कर गए
बचपन जो खुशहाल भरा था
जंगल कानन सदृश्य कर गए
रूठ गए साथी सब
भूल गए सब खेल
जैसे-जैसे मिलन हुआ
विषयों की बढ़ गई रेलमपेल
कौन विषय है महत्वपूर्ण
देना किसको कितना समय
यही बहस का विषय बना।
कभी टेस्ट हो या प्री बोर्ड
सभी में हम बेहाल
बजरंग बली से करें प्रार्थना
संकट मोचन करो बहाल।
हमीं क्यों? गुरूओं के भी हाल बुरे
गर्दन पर लटक रही
सबको पास कराने की दोधारी छुरी
अपनी उम्र के मित्रों से
मेरा सुझाव बस इतना है
समय का सदुपयोग करो तो
जीवन बस अपना है।
माहौल कभी गंभीर न होगा
मन कभी अधीर न होगा
जब हम स्वयं को समझेंगे
अभिभावक अपने बच्चों को जानेंगे
शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों को
सतत रूप में प्रयोगधर्मिता के साथ
विकास की धारा में
विश्व पटल पर रखकर सोचेंगे
पूर्ण हो सकेगा शिक्षा का अभिप्राय
सार्थक होंगे सपने हमारे
जो हमने स्वयं में देखें हैं।
-कमल चन्द्र शुक्ल
